Panchayat Review: शानदार एक्टिंग और जबरदस्त कॉमेडी के लिए देख सकते हैं टीवीएफ की नई वेब सीरीज़ 'पंचायत'

Panchayat Review: शानदार एक्टिंग और जबरदस्त कॉमेडी के लिए देख सकते हैं टीवीएफ की नई वेब सीरीज़ 'पंचायत'
 अमेज़न प्राइम वीडियो पर द वायरल फ़ीवर (TVF) की नई वेब सीरीज़ 'पंचायत' रिलीज़ हो गई है। 'हॉस्टल डेज़' के बाद 'पंचायत' को भी टीवीएफ की टीम ने ही बनाया है। 'पंचायत' को तीन अप्रैल यानी शुक्रवार को स्ट्रीम किया गया। इस सीरीज़ में सबसे मजबूत इसकी स्टार कास्ट है। रघुवीर यादव और नीना गुप्ता के साथ टीवीएफ के जाने-पहचाने चेहरे जीतू उर्फ जितेंद्र कुमार इस सीरीज़ में मौजूद हैं। हल्के-फुल्के अंदाज़ में यह सीरीज़ ग्रामीण परिवेष के गंभीर विषयों को छूती है। सीरीज़ में टीवीएफ की छाप साफ़ नज़र आती है। गाली- गौलज़ और अति उत्तेजित दृश्य के बिना भी यह आपका बेहतरीन मनोरंजन करती है। आइए जानते हैं कि टीवीएफ की यह सीरीज़ हमें कैसी लगी-

कहानी

सीरीज़ की कहानी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के फुलेरा ग्राम पंचायत पर सेट की गई है। इंजीनियरिंग करने के बाद अभिषेक त्रिपाठी बतौर पंचायत सचिव फुलेरा आते हैं। शहर में पले-बढ़े अभिषेक के लिए ना नौकरी मन की है और ना ही उस ग्रामीण परिवेश। वह आने के बाद नौकरी के साथ ही कैट की तैयारी करने लग जाता है। यहां अभिषेक का पाला  प्रधान पति ब्रृजभूषण दूबे, ग्राम प्रधान मंजू देवी और सहायक विकास से पड़ता है। उसके सामने कई चुनौतियां हैं, जैसे- बिना लाइट के पढ़ना, गांव वालों से डील करना और कैट की परीक्षा पास करना। क्या वह गांव से जुड़ पाता है और कैट की परीक्षा पास करता है, यह जानने के लिए आपको सीरीज़ देखनी होगी। 

क्या लगा अच्छा
टीवीएफ की वेब सीरीज़ की सबसे ख़ास बात है इसके एक्टर। छोटे-से-छोटा किरदार भी अपनी छाप छोड़ जाता है। प्रधान पति के किरदार में रधुवीर यादव बिलकुल परफ्केट लगते हैं। उन्हें बार-बार देखने का दिल करता है। विकास का किरदार निभाने वाले चंदन काफी सही लगते हैं। एक ऐसा भी किरदार है, जो कम सीन्स के बाद भी याद रहता है। 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' में थाना प्रभारी धनसर का किरदार निभाने वाले फैसल मलिक इस सीरीज़ में उप प्रधान प्रह्लाद के रूप अपनी छाप छोड़ जाते हैं। नीना गुप्ता के हिस्से ज्यादा सीन्स  नहीं आए हैं, लेकिन  वह भी फ्लॉलेस लगती हैं। जीतू को जो किरदार दिया गया है, वह उसे बड़े आसानी से निभाते हैं। 
आठ एपिसोड्स की इस सीरीज़ में आठ कहानियां हैं। सभी कहानियों का अपना महत्व है। अलग-अलग कहानियां होने के बावजूद भी यह एक दूसरे से इंटरकनेक्ट हैं। गांव की सभी समस्याओं पर बड़ी बारीकी से ध्यान दिया गया है। बिजली, दहेज़, आत्मसम्मान के नाम पर लड़ाई, महिलाओं का हक और गरीबी,  इस सीरीज़ में सब कुछ दिखाने की कोशिश की गई है। एक सीन है, जिसमें प्रधान पति अपनी बेटी से दो अुंगली में से एक का चुनाव करवाके शादी की बात को तय करने की कोशिश करता है। ऐसे छोटे-छोटे सीन्स से माहौल को सेट करने का प्रयास किया गया है। सीरीज़ का निर्देशन भी काफी शानदार है। 'परमानेंट रूममेट' जैसी सीरीज़ बनाने वाले दीपक कुमार मिश्रा ने ख़ुद को एक बार फिर साबित किया है। 
कहां रह गई कमी
सीरीज़ में हंसी का पूरा ख्याल रखा गया है। अगर कमी की बात करें, तो कहीं-कहीं ये सामाजिक बुराइयों पर चोट करने से चूक जाती है। इस सीरीज़ का प्रोटेग्निस्ट अभिषेक कोई सुधारवादी नहीं है। उसे अपने काम से मतलब है। ना कि गांव के सुधार या भ्रष्टाचार से । यह इस सीरीज़ की सबसे बड़ी कमी और ख़़ूबी भी है। अभिषेक बिलकुल वैसा है, जैसा कि एक आम युवा होता है। वह महत्वाकांक्षी है। उसे सिर्फ अपने आप से मतलब है। यह कमियां उसे रियलिस्टिक बनाती हैं। लेकिन बतौर दर्शक आप उससे बदलाव की उम्मीद करते हैं। 
अंत में-
आप अगर कुछ अच्छा मूड फ्रेश करने वाले कंटेंट देखना चाहते हैं, तो पंचायत आपके लिए हैं। सीरीज़ में जबरदस्त कॉमेडी के साथ गांव की मिठास भी है। इस परिवेष से आने वाले दर्शक एक कनेक्शन भी महसूस करेंगे। 

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