सबसे अच्छा गिफ्ट जो आप बच्चे को दे सकते है

सबसे अच्छा गिफ्ट जो आप बच्चे को दे सकते है
माँ बनने के साथ ही हमारी पूरी दुनिया अपने बच्चो के आस-पास घुमने लगती है . उनके सोने-जागने, उठने-बैठने, खाने-पीने की आदतों के हिसाब से हम अपने आपको बदलते चले जाते है और उनकी हर जरुरत को पूरा करने की कोशिश के बीच हमारी खुद की इच्छाए, जरूरते और शौक न जाने कहाँ गायब हो जाते है.हमारी परिभाषा में भी एक अच्छी माँ वो है जो अपने आपको भूल कर बच्चे को ही सब कुछ समझे, ऐसे में अपने खुद के लिए सोचना हमें ठीक नहीं लगता. लेकिन क्या आप ये जानते है कि अपने बच्चे को एक ऐसा सफल व्यक्ति बनाने के लिए जो सुख-दुःख दोनों स्थितियों का सामना ठीक से कर पाए ये जरुरी है कि हम अपनी भी उतनी ही देखभाल और परवाह करे जितनी कि हम अपने बच्चे की करते है. और ऐसा करना हमारा 'स्वार्थी' बनना नहीं बल्कि एक अच्छी पेरेंटिंग का एक महत्पूर्ण कदम है और अपने बच्चो के लिए हमारा सबसे अच्छा गिफ्ट.
क्यों ? इसके पीछे महत्पूर्ण कारण है :

पहला तो ये कि हमारे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने का सीधा सम्बन्ध हमारे बच्चों की सही देखभाल से है. अपने अनगिनत कामों को पूरा करने की जल्दबाजी में हममे से ज्यादातर लोग समय से खाना नहीं खाते, ब्रेकफास्ट छोड़ देते है या जैसे तैसे जल्दी खाना खा कर ख़तम करते है. इसी तरह ठीक से तैयार होने,आराम करने,अपनी पसंद का काम करने आदि को भी हम टाइम वेस्ट करने जैसा मान लेते है, नतीजा.........शारीरिक और मानसिक रूप से हुयी थकान के कारण चिडचिडापन, गुस्सा, काम में मन ना लगना, अजीब सा खालीपन लगना जैसे कई लक्षण दिखाई देने लगते है जिसका सीधा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है. हमारे खाने-पीने, व्यायाम, आराम आदि के लिए निकाले गए समय से हमें अपने काम को बेहतर ढंग से करने के लिए एनर्जी मिलती है. जब हम अपने इंटरेस्ट को, अपनी हॉबी को महत्त्व देते है तब हम अपनी रोजमर्रा की परेशानियो और चिन्ताओ से ऊपर उठकर उस काम में ख़ुशी महसूस करते है. इस तरह आपकी थकान, भूख-प्यास-थकान के कारण होने वाली चिडचिडाहट और रोजमर्रा के कामों में अपने लिए कुछ ना कर पाने के फ्रसटेशन को हम पहले ही डील कर लेते है और ये नेगेटिव इमोशन बच्चे तक नहीं पहुँच पाते, साथ ही हमारे पास इतनी एनर्जी होती है कि हम बच्चो की एक्टिविटी में पूरी तरह सक्रिय होकर भाग ले पाए. बच्चे भी इस स्थिति में ज्यादा सिक्योर और कॉनफिडेंट फील करते है.

दूसरा कारण ये कि हमारी जिन्दगी के उतार-चढावो से, हर दिन आने वाली समस्याओ से हम दुखी और निराश होते है. ये नकारात्मक भावनाए यदि ज्यादा समय तक हमारे साथ रहती है तो हम स्वाभाविक रूप से अपने प्रति ज्यादा लापरवाह हो जाते है और इस कारण फिर हम और ज्यादा निराशा में आ जाते है. इस चक्र को तोड़ने के लिए जरुरी है कि हम अपनी दिनचर्या में, अपने पहनावे में कुछ अंतराल में बदलाव लाये ताकि उस बदलाव से जो नयापन आएगा, जो ख़ुशी मिलेगी उससे निराशा को दूर करने में मदद मिलेगी. आप खुद ही सोचिये चाहे जो भी परिस्थिति हो हमारे अलग-अलग त्योहारों के आते ही नए कपडे पहनने, तैयार होने, घर सजाने से लेकर रिवाजो और मान्यताओ को पूरा करते समय अचानक हमारे जीवन में कितना उत्साह और सकारात्मकता आ जाती है और शायद इन सबके पीछे ये ही एक महत्पूर्ण उद्देश्य है.
सबसे महत्पूर्ण कारण ये कि हम बच्चो के लिए रोल-मॉडल होते है और हमारी हर एक एक्टिविटी को बच्चे बारीकी से देखते है और जाने-अनजाने कई चीज़े आत्मसात कर लेते है . जब हम अपने आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए मेहनत करते है पर साथ ही अपने आज को भी अच्छे से जीते है तो हम बच्चो को महसूस करवा पाते है कि जिन्दगी कोई डेस्टिनेशन नहीं है जहाँ भाग-दौड़कर हमें पहुंचना है या कोई सजा नहीं है जिसे जैसे-तैसे काटना है बल्कि ये एक खुबसूरत यात्रा है जिसके हर एक दिन को महत्पूर्ण मानकर उसका आनंद उठाना है. जब हम अपनी प्रॉब्लम को ठीक से देखते है, उसके लिए दुसरो से सलाह लेते है या समाधान के लिए सही तरीके चुनते है तो हम बच्चों को बताते है कि समस्याओ का आना स्वाभाविक है, उनसे भागने की बजाय दूसरो से मागदर्शन लेना या समाधान के सही तरीके ढूँढना जरुरी है. जब हम एक बैलेंसड लाइफ जीते है तो बच्चो को भी ऐसी ही जिन्दगी जीने के लिए प्रेरित करते है.
अपने बच्चों से पूछकर देखिये वो भी अपने पेरेंट्स को हमेशा सजा-सँवारा, खुश और उर्जा से भरपूर देखना चाहते है. इसलिए अपने आप पर ध्यान दीजिये.... अपनी खाने-पीने, पहने-ओढने, आराम-व्यायाम, पसंदीदा काम आदि के लिए समय निकाले. और अपने आज और कल को बेहतर बनाने के लिए कदम बढ़ाये.


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